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आज हम आपको प्रसिद्ध कवि एवं लेखक Jaishankar Prasad जी की Biography बताएंगे। आप जयशंकर प्रसाद जी का ये जीवन परिचय पढ़ लिए तो आपको इनके किसी और जीवन परिचय की ज़रूरत नही पड़ेगी।
हिंदी साहित्य को जय शंकर प्रसाद जी की उपलब्धि एक युगांतर कारी घटना है। लगता है वे हिंदी की श्री वृद्धि के लिए ही जन्मे थे। जो अपने कार्य पूर्ण कर मात्र 48 वर्ष की अल्पायु में ही यहां से चले गए। हिंदी साहित्य का प्रत्येक पक्ष उनकी लेखनी से गौरवान्वित हो उठा। हिंदी साहित्य उन्हें सदैव याद रखेगा।
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Important Points of Jaishankar Prasad Biography in Hindi
सबसे पहले जयशंकर प्रसाद जी की जीवनी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु देख लिए जाएं। इससे आपको JaiShankar Prasad Biography in Hindi याद रखने में आसानी होगी। और आप जयशंकर प्रसाद जी के बारे में कभी भी कहीं भी लिख व बता सकते हैं।

जन्म | सन 1889 ई. |
जन्मस्थान | काशी (वाराणसी) |
मृत्यु | 15 नवम्बर, 1937 ई. |
रचनाएं | 1- काव्य- कामायनी, आंसू, लहर, झरना। 2- उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)। 3- कहानी- छाया, प्रतिध्वनि, इंद्रजाल। 4- नाटक- चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, अज्ञातशत्रु आदि। 5- निबंध- काव्यकला एवं अन्य निबंध |
भाषा | परिमार्जित एवं संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त है। |
शैली | विचारात्मक, इतिवृत्तात्मक, चित्रात्मक आदि। |
साहित्य में स्थान | साहित्य की विभिन्न विधाओं में योगदान देकर विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। |
Jaishankar Prasad Biography in Hindi – जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
जयशंकर प्रसाद की जीवनी
जयशंकर प्रसाद जी का जन्म काशी के प्रसिद्ध वैश्य परिवार में सन 1889 ई. को हुआ था। इनका परिवार ‘सुंघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था। प्रसाद जी के पिता देवी प्रसाद स्वयं साहित्य प्रेमी व्यक्ति थे। इस प्रकार जयशंकर प्रसाद जी को जन्म से ही साहित्यिक वातावरण प्राप्त हुआ।
इनके पितामह शिवरतन साहू परम् भक्त और दयालु प्रकृति के व्यक्ति थे। बालक जयशंकर प्रसाद ने 9 वर्ष की आयु में ही एक कविता लिख डाली। आरम्भ में इनकी शिक्षा की भी अच्छी व्यवस्था की गई।
प्रसाद जी ने बाल्यकाल में ही अपने माता-पिता के साथ देश के विभिन्न तीर्थस्थानों की यात्रा की। अमरकंटक पर्वत श्रेणियों के बीच नर्मदा में नाव द्वारा भी यात्रा की।
यहां से लौटने के बाद जयशंकर प्रसाद जी के पिता स्वर्ग सिधार गए और पिता की मृत्यु के 4 साल बाद मां का साया भी इनके सिर से उठ गया।
शिक्षा- जयशंकर प्रसाद जी की आगे की शिक्षा का प्रबंध बड़े भाई श्री शम्भूनाथ जी ने किया। सर्वप्रथम जयशंकर प्रसाद जी का नाम क्वीन्स कॉलेज में लिखाया गया। किंतु वहां मन नही लगा तो घर पर ही योग्य शिक्षकों से अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन करने लगे।
जयशंकर प्रसाद जी की काव्यसृजन में बचपन से ही रुचि थी। पहले तो इनके बड़े भाई नही चाहते थे कि ये साहित्य सृजन में उतरे पर साहित्य के प्रति विशेष रुचि देखकर पूर्ण स्वतंत्रता दे दी।
जब जयशंकर प्रसाद जी 17 वर्ष के हुए तो बड़े भाई शम्भूनाथ जी की भी मृत्यु हो गयी। अब इनको संकट के बादलों ने घेर लिया। पर इन्होंने घर पर ही वेद, पुराण, इतिहास, दर्शन, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेजी और हिंदी का गहन अध्ययन कर काव्य सृजन प्रारम्भ कर दिया।
माता-पिता, बड़े भाई, तीन पत्नियों की मृत्यु और व्यापार के घाटे से ये क्षीणकाय हो गए। और ऋणग्रस्त होकर सम्पूर्ण सम्पत्ति बेच दी।
संघर्ष और चिंताओं से स्वास्थ्य काफी खराब हो गया और यक्ष्मा जैसे रोग से ग्रसित हो गए। इसी वजह से 15 नवम्बर 1937 ई. को जयशंकर प्रसाद जी की मृत्यु हो गयी और इस संसार से विदा हो गए।
जयशंकर प्रसाद जी की रचनाएं (Jaishankar Prasad Books)
जयशंकर प्रसाद जी बचपन से साहित्यिक प्रतिभा के धनी थे। ये महान कवि, श्रेष्ठ निबंधकार, कहानीकार, सफल नाटककार, और उपन्यासकार थे।
जयशंकर प्रसाद जी की रचनाएं (Jaishankar Prasad Books) निम्नलिखित हैं-
1- नाटक- चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी, विशाख, राज्यश्री, कामना, जनमेजय का नाग यज्ञ, करुणालय एवं एक घूट।
2- कहानी संग्रह- प्रतिध्वनि, छाया, इंद्रजाल तथा आकाशदीप इनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं।
3- काव्य- कामायनी (महाकाव्य), झरना, लहर, आंसू आदि प्रसिद्ध काव्य ग्रन्थ हैं।
4- उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण) आदि।
5- निबंध संग्रह- काव्यकला और अन्य निबंध।
जयशंकर प्रसाद जी की भाषा शैली
भाषा– जयशंकर प्रसाद जी संस्कृत भाषा के भी बहुत अच्छे ज्ञाता थे। अतः भाषा मे संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है। भावों और विचारों के अनुसार भाषा का स्वरूप विषय वस्तु के आधार पर ही गठित हुआ है।
भाषा का एक उदाहरण- “रोहतास दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमण रहा था।”
शैली– जयशंकर प्रसाद जी की शैली में काव्यात्मकता, चित्रात्मकता एवं नाटकीयता है। इसके विविध रूप इस प्रकार हैं-
- वर्णनात्मक शैली
- आलंकारिक शैली
- भावात्मक शैली
- चित्रात्मक शैली
- अनुसंधानात्मक शैली
- विचारात्मक शैली
- सूक्ति शैली
- संवाद शैली
जयशंकर प्रसाद जी का साहित्य में स्थान
जयशंकर प्रसाद जी छायावाद के चार स्तम्भों में से एक सुढृढ़ स्तम्भ थे। जयशंकर प्रसाद जी को ही छायावाद का जनक माना जाता है। आधुनिक हिंदी साहित्य में इनका मूर्धन्य स्थान है। नंददुलारे बाजपेेेई के शब्दों में- “भारत के इनेे-इने आधुनिक श्रेष्ठ साहित्यकारों में प्रसाद जी का पद सबसे ऊंचा है।”
Jaishankar Prasad Biography in Hindi – जयशंकर प्रसाद जी की जीवनी
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